Friday, February 13, 2009


ख़ुद से मुलाकात का मन

तेज हवाओं के झोंके हैं
सन्नाटों का सूनापन ।
और परत दर परत अँधेरा
आधी रात अकेलापन।
०००००००
उठापटक , जीवन की भागमभागों से जब ऊब गया ।
तब - तब चाहे अनचाहे मैं बिन पानी के डूब गया । ।
थामे उंगली रहा भटकता साँसों का बनजारापन । ।
बहुत दिनों के बाद हुआ है ख़ुद से मुलाकात का मन । ।
आधी रात अकेलापन । ।
००००००
मौसम की है छेंड़ आज कुछ मन ज्यादा ही चंचल है ।
सब कुछ तो है ठीक नहीं , कुछ बाहर- भीतर हलचल है । ।
"शलभ" न बांधो अब ऐसे में इस मन का आवारापन । ।
बहुत दिनों के बाद हुआ है ख़ुद से मुलाकात का मन । ।
आधी रात अकेलापन । ।