Tuesday, June 3, 2008


क्या बताऊँ

क्या बताऊँ, बताने को क्या रह गया ।
जितना पानी था आँखों में सब बह गया ॥
०००००
फ़िर भरोसा न करना कभी आस पर,
दिल न दे बैठना ऐसे विश्वास पर,
ज़िंदगी को पड़े जब गला घोंटने ,
और लग जाएं प्रतिबन्ध हर साँस पर।
मौत भी गुदगुदाने लगे कांख में ,
तो सिवा साथ हँसने के क्या रह गया॥
क्या बताऊँ, बताने को क्या रह गया ।।
०००००
जो ये कहते थे दुनिया न उनके बगैर,
श्मशानों में लेटे हैं फैलाये पैर,
कब्र है भी कि सारे निशान मिट गए ,
लेने वाला नहीं कोई उनकी है खैर।
अर्थ अपने शलभ हैं लगे पूछने ,
ऐसे शब्दों का बस कारवां रह गया।।
क्या बताऊँ, बताने को क्या रह गया ।।
०००००

2 comments:

विक्रांत बेशर्मा said...

kya bataun sahab , kamaal kar diya aapne.

SATYENDRA "SHALABH" said...

THANX VIKRANT, BAKI KAVIAON PER AAPKI PRATIKRIYA KI PRATIKSHA RHEGI
SHALABH